Thursday, October 14, 2010

BECHAINI

इन दिनों कुछ बेचैन नज़र आता हूँ मैं
भिखारियों,नंगे बच्चों और तंग,टूटी झोपड़ियों
की कतारों से तो रोज़ ही गुजरता था
आज उनके लिए आँखों में कुछ नमी सी पाता हूँ मैं

लगता था बचपन बहुत पीछे छोड़ चुका हूँ
अब औरों की तरह नौकरी और गृहथि में रम चुका हूँ
जिन प्रश्नों को दबा चुका था दिल की गहराइयों में
उन्ही मासूम जिज्ञासाओं को फिर जगी सी पाता हूँ मैं

सफलताओं की सीढ़ी तेज़ी से चढ़ रहा था
मुसीबतों का सामना निडरता से कर रहा था
आँखों में कल की चमक, दिल में उमंगों का जोश लिए
सिपाही सी सधी थी मेरी चाल
आज कुछ थकी सी पाता हूँ मैं

सब कुछ है मेरे पास
हंसी,ख़ुशी और सुविधा के सब सामान
प्यार,शुभकामनायें और ढेरों आशीर्वाद
फिर भी एक अनजानी कमी सी पाता हूँ मैं
इन दिनों कुछ बेचैन नज़र आता हूँ मैं

विशद

Tuesday, October 12, 2010

BUSINESS CONDUCT

BE HUNGRY FOR SUCCESS, BUT NOT AFRAID OF FAILURES
BE AGGRESSIVE, BUT A GOOD LISTENER
ACT DECISIVELY,BUT NOT HASTILY
CELEBRATE SUCCESS, BUT KNOW ELEMENTS THAT LED TO IT
KNOW COMPETITION BUT NEVER COPY
BE CALM BUT NOT COLD.
BE FLEXIBLE BUT NOT WHIMSICAL
BE HUMBLE BUT NOT WEAK
BE POLITE BUT NOT MEEK
BE DIPLOMATIC, BUT NOT HYPOCRITE
BE WARY BUT NOT CYNICAL
BE CREATIVE BUT DON'T BLUFF
BE ACCOUNTABLE BUT INCLUSIVE
EVOLVE CONSENSUS BUT OWN DECISIONS
DELEGATE WORK NOT ACCOUNTABILITY
FOLLOW RULES BUT REVIEW THEM
BE LOGICAL BUT HUMAN

VISHAD

Saturday, October 9, 2010

ANJAANA-ANJAANI

साथ जीनें मरनें की खायी कसमें
चाँद तारे तोड़ने के किये वादे
फूलों और उपहारों के हुए आदान प्रदान
फिर भी हैं क्यूँ
तेरी पसंद से मैं,मेरी पसंद से तुम
अनजाना-अनजानी

महफ़िलें कई सजीं,हंसी ठहाके खूब लगे
साथ-साथ आँखों में चमके दिवाली के कई दिए
फिर भी हैं क्यूँ
तेरी ख़ुशी से मैं  मेरी ख़ुशी से तुम
अनजाना-अनजानी

साथ देखे जीवन के सब मौसम
कई सफ़र,उतार-चढ़ाव और हर मोड़
पर साथ थे हम
फिर भी हैं क्यूँ
तेरे दुःख से मैं ,मेरे दुःख से तुम
अनजाना-अनजानी

मिलकर बुने थे सपने कल के
साथ चलने थे रास्ते मंजिलों के
फिर भी हैं क्यूँ
तेरी डगर से मैं,मेरी डगर से तुम
अनजाना-अनजानी

विशद

This poem was inspired by the title of a latest movie ANJAANA-ANJAANI, which i was hearing a lot about.I have not seen the movie or know anything of its plot but this title spoke a lot and inspired me to write a poem on the irony of relations in present times.

Wednesday, October 6, 2010

JEEVAN SE RISHTA

कुछ रिश्तों के नाम नहीं होते
कुछ पल बसे रहते हैं आँखों में
बरसों जीवन के बदलते मौसमों की
मार सहकर भी अनजान नहीं होते

कुछ यादें बन जाती हैं सहारा ज़िन्दगी का
ले जाती हैं अपने साथ एक दूसरी दुनियां में
छुपा लेती हैं अपने गर्म आलिंगन में
ठहर जाते हैं,कुछ और पल, हम तमाम नहीं होते

बिखरे रिश्ते जुड़ भी सकते हैं
विमुख रास्ते मुड़ भी सकते हैं
आशायें जीवन का पर्याय हैं
हमें समझना है
हर दिन एक से आसमान नहीं होते.

जीवन से रिश्ता जोड़ना है
थक कर बैठ, फिर उठना है
दूसरे के रास्तों पर तो कोई भी चल सकता है
अपने बनाये पथ आसान नहीं होते.

विशद