Tuesday, January 10, 2017

DAYARA

इंसा न बन सका दामन बचाकर,
फरिश्ता बन गया दामन जलाकर। 

दिलदार न बन सका मोहब्बत जताकर ,
मसीहा  बन गया पर ज़ख्म खा कर। 

इल्म आ न सका किताबें उठाकर,
वाइज़ बन गया चेहरा -ए -इबारत पढ़कर। 

सलीका आ न सका सोहबत-ए -मुज़म्मिल कर ,
शरीफन बन गया बाजार -ओ -मैखाने में जाकर । 

भूख बढ़ती गयी मेरी, मुझे मिलता जो गया,
हुआ यकीं  के है सब मेरा, ये दो जहां गवां कर। 

वजूद बढ़ता रहा मेरा, पर दायरा घटता रहा,
मुक़म्मल हो सका  मैं सबको अपना बनाकर।  


विशद 










1 comment:

  1. पारा पारा जो हुआ पैराहन-ऐ-जान,
    हिमायती बन गया मैं रूहानियत का।

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