Thursday, October 14, 2010

BECHAINI

इन दिनों कुछ बेचैन नज़र आता हूँ मैं
भिखारियों,नंगे बच्चों और तंग,टूटी झोपड़ियों
की कतारों से तो रोज़ ही गुजरता था
आज उनके लिए आँखों में कुछ नमी सी पाता हूँ मैं

लगता था बचपन बहुत पीछे छोड़ चुका हूँ
अब औरों की तरह नौकरी और गृहथि में रम चुका हूँ
जिन प्रश्नों को दबा चुका था दिल की गहराइयों में
उन्ही मासूम जिज्ञासाओं को फिर जगी सी पाता हूँ मैं

सफलताओं की सीढ़ी तेज़ी से चढ़ रहा था
मुसीबतों का सामना निडरता से कर रहा था
आँखों में कल की चमक, दिल में उमंगों का जोश लिए
सिपाही सी सधी थी मेरी चाल
आज कुछ थकी सी पाता हूँ मैं

सब कुछ है मेरे पास
हंसी,ख़ुशी और सुविधा के सब सामान
प्यार,शुभकामनायें और ढेरों आशीर्वाद
फिर भी एक अनजानी कमी सी पाता हूँ मैं
इन दिनों कुछ बेचैन नज़र आता हूँ मैं

विशद

2 comments:

  1. आपकी कविता मुझे बहुत पसंद आयी. आपने जिस तरेह मेरे मन की भावनाओं को प्रतिबिंबित किया, पढ़ कर अच्छा लगा. आशा करता हूँ, आप आगे भी ऐसी कवितायेँ लिखते रहेंगे.

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  2. Kya baat hai.....Kavi Sahab....
    Dil ko chu lene waali pankthiya...

    Excellent thoughts put together in a very lucid manner

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